लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

341 पाठक हैं

प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ

'इस संसारमें अनेक प्रकारके पुण्य और परमार्थ है। हमारे शास्त्रों में नाना प्रकारके धर्मानुष्ठानोंका सविस्तर विधान है तथा उनके सुविस्तृत माहाक्योंका वर्णन है। दूसरोंकी सेवा-सहायता करना पुण्यकार्य है। इससे कीर्ति, आत्मसंतोष तथा सद्गति प्राप्त होती है; किंतु इससे भी बढ़कर एक पुण्य परमार्थ है और वह है-आत्मनिर्माण। आत्मनिर्माणकी तुलना सहस्त्रों अश्वमेधों से नहीं हो सकती।

आत्मनिर्माण मानवमात्रका प्रथम कर्तव्य है। हम दूसरोंको उपदेश, सलाह तथा मार्ग-प्रदर्शन करते नहीं थकते। बात-बात में दूसरों की त्रुटियाँ निकालते हैं, अपने ६राबर दूसरेको नहीं समझते, मिथ्या अहंकार में दूसरों के प्रति भांति-भांति के कुशब्दोंका उच्चारण करते हैं। पर-छिद्रान्वेषण करते समय हम यह तनिक भी नहीं सोचते कि हम स्वयं कितनी निर्बलताओंके पुंज है। अपनी मानसिक तुच्छताकी ओर हममेंसे प्रायः किसीका भी ध्यान आकृष्ट नहीं होता। दूसरों को उपदेश देना तथा स्वयं अपने परिष्कार का प्रयत्न न करना- एक मानसिक विकार है। दूसरोंका मार्ग प्रदर्शन करानेवाला मूर्ख नहीं जानता कि वह स्वयं कितने गहरे अन्धकारमें छटपटा रहा है।

शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य को परोपकार करना चाहिये, किंतु सबसे पहले हमें दूसरोंकी बात छोड़कर स्वयं अपना उपकार अर्थात् आत्मोद्धार करना चाहिये। हमें आज स्वयं अपने चरित्र तथा स्वभावके परिष्कार की नितान्त आवश्यकता है। आज संसारको दूसरोंको उपदेश देनेवाले उपदेशकों की आवश्यकता नहीं है। सच पूछो तो हमें अपना उपकार, उद्धार एवं विकास करनेवाले आत्मसाधकोंकी जरूरत है। दूसरोंकी सेवा-सहायता-परोपकार करना पुण्य है, किंतु अपनी सेवा-सहायता, अपने दुर्गुणोंको, कुविचारोंको, अशुभ संस्कारोंको दूर करना, मनमें एकत्रित ईर्ष्या, तृष्णा, द्रोह, चिन्ता, भय एवं वासनाओं को विवेक की सहायता से आत्मज्ञानकी अग्रिमें जला देना हमारे लिये सबसे बड़ा धर्म है। यदि हममेंसे प्रत्येक व्यक्ति अपनी त्रुटियोंको दूर करनेमें संलग्न हो जाय, अर्थात् अपनी मानसिक तुच्छता, दीनता, हीनता, दासता का उन्मूलन कर मनमें आत्मज्ञानका दीपक प्रकाशित कर ले, तो हमारे विकासकी एक मंजिल पूर्ण हो जाय। हर भारतवासी यदि आत्मनिर्माण करें तो पृथ्वी स्वर्ग बन सकती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book